स्थापना दिवस से अव तक
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के 58वें राज्य सम्मेलन में सहभागिता कर रहे सम्मानित अतिथियों, पदाधिकारियों, प्रतिनिधियों तथा सभी शिक्षक साथियों एवं बहनों नाथ नगरी, क्रान्तिकारी, साहित्यक एवं सांस्कृतिक भूमि पर स्वागत करते हुये मैं रोमांच के साथ भाव विभोर हूँ। बरेली जनपद जो कि महाभारत काल में पांचाल क्षेत्र के नाम से जाना जाता रहा है एवं बरेली परिक्षेत्र के चारों दिशाओं में महादेव के स्वयंशंभु विराजमान है जिससे बरेली को नाथ नगरी बरेली के नाम से भी जाना जाता है और रोहिला बन्धुओं का साम्राज्य, पंडित राधोश्याम कथावाचक, दरगाह ए आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान, बाँस फर्नीचर नगरी बरेली, सुरमाऐ बरेली एवं झुमका बरेली सहित अनेक युग परिवर्तकों की जन्म एवं कर्मभूमि रही है शिक्षक आन्दोलन में भी यह तपः भुमि युग बोध का मार्ग प्रशस्त करती रही है। देश के इतिहास में संगठन की स्थापना और संघर्ष यात्रा का ऐतिहासिक महत्व है। गौरवशाली अतीत से प्ररेणा लेकर प्रगतिशील अग्रगामी दिशा की ओर सामूहिक रूप से उन्मुख होना समय की आवश्यकता है।
आप सभी का अभिनन्दन करते हुये शिखक आन्दोलन के इतिहास का संक्षिप्त तथा सहज वर्णन करना मैं अनिवार्य समझता हूँ। अतीत के पृष्ठ पलटने के पीछे हमारा लक्ष्य यह है कि सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में आयोग, चयनबोर्ड अथवा शिक्षा सेवा आयोग के माध्यम से शिक्षक पथ की सेवा में आये नई पीढ़ी के साथी यह जान सकें कि सेवा सुरक्षा तथा वेतन सुरक्षा सहित सभी प्राप्त उपलब्धियाँ किसी सत्ता प्रतिष्ठान ने हमें स्वभाविक न्याय के रूप में प्रदान नहीं की हैं। इसी प्रकार
वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों को यह जानना और प्रेरणा लाना आवश्यक है कि प्रारम्भिक दौर में सहायता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों की दशा कई संदर्भों में वर्तमान वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों की भांति ही थी।
हम सभी को आत्मचिन्तन के साथ आंकलन करना चाहिये कि हमारी पुरानी पीढ़ी ने सतत् संघर्ष करके जो प्रतिष्ठापूर्ण जीवन और सेवानिवृत्ति के वाद परिवार को संरक्षण का संवैधानिक हक हांसिल कराया था उसमें ह्रास की नई चुनौतियाँ सामने हैं। सामाजिक सिद्धान्त है कि पुरानी पीढ़ी जो वरासत छोड़ जाती है अगली पीढ़ी उसको और अधिक समृद्ध करती है लेकिन सच से हम मुँह नहीं मोड़ सकते हैं। वर्तमान संवेदनहीन रजनैतिक व्यवस्था उपलब्धियां छीनने पर अमादा प्रतीत होती हैं और हम उपलब्ध्यिों से इस सीमा तक आत्मसंतोष का अनुभव करते हैं कि संघर्षशीलता की धार अनाव्यवधानता में क्रमशः कुठित होती जा रही है।
संगठन की स्थापना सन 1956 के कानपुर महानगर में उस दौर की पीढ़ी चिन्तनशील, समयनायको ने की थी। संस्थापक पीढ़ी की स्वर्गीय विद्यासागर दीक्षित प्रदेशीय अध्यक्ष मेरठ व महामंत्री शिव नारायण दीक्षित कानपुर तथा संगठन के झण्डागान के रचियता स्व० कृष्ण कुमार द्विवेदी कोमल को नमन करते हुये मैं विचार करता हूँ कि कानपुर का योगदान स्वाधीनता समर, पत्रिकारिता व शैक्षिक वैचारिक प्रगतिशील तथा श्रमिक आन्दोलन के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। यहाँ से ही संगठन की साहित्य रचनाधर्मी, नैसर्गिक न्याय पाने की उत्सर्गवादी यात्रा प्रारम्भ हुई थी।
सन 1956 के पूर्व शिक्षक सम्बन्धी वेतन संवगों के अनुसार अलग-अलग समूह में विभक्त था। प्रधानाचार्यों, शिक्षकों तथा शिक्षणोत्तर कर्मचारियों की सेवा दशायें असम्मानजनक शौषणयुक्त तथा सेवायोजकों की स्वेच्छाचारिता पर निर्भर थी। संगठन की स्थापना में सामूहिक नवचेतना का स्फूर्ति के साथ संचार हुआ। सन 1956 में समस्त वेतन विसंगतियों के विरूद्ध माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षाओं का वहिष्कार करके आन्दोलन का बिगुल फूंका। इस सफल आन्दोलन के पड़ाव से 1968-69 में जेल भरो आन्दोलन किया गया और इस वर्ष वेतन वितरण अधिनियम तथा सेवा सुरक्षा का वैधानिक कवच हम सभी को प्राप्त हो सका। सन 1972 में प्रगतिशील नेतृत्व का अभ्युदय नये उत्साह के साथ हुआ। मील के पत्थर की भांति उन्नाव की धरती पर 4 व 5 मार्च 1972 को सम्पन्न राज्य सम्मेलन गौरव के साथ स्मरण किया जाता है। इस राज्य सम्मेलन का संयोजन श्री के.एस. सेंगर ने किया था। 4 दशक के वाद नव प्रगतिशील यात्रा के शुरुआत में उन्नाव की धरती को राज्य सम्मेलन आयोजित करने का अवसर युगवोध की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकेगा। ऐसी हमें आशा है।
सन 1972 के सम्मेलन में पारित प्रस्तावों के क्रम में 3 दिसम्बर 1972 से प्रदेश के सभी माध्यमिक विद्यालयों में पूर्ण हड़ताल व जेल भरो आन्दोलन का शंखनाद किया गया। इस आन्दोलन से तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा शिक्षक नेतृत्व से वार्ता के लिये संवेदनशील हुये तथा उनके साथ 1 नवम्बर 1973 से राजकीय शिक्षकों की वेतन समानता हम सभी को भी प्रदान कर दी गयी। इसी श्रृखला में 1975 में शिक्षकों व कर्मचारियों को सामूहिक जीवन वीमा का लाभ 1 मार्च 1974 से लागू किया गया था। शिक्षकों की पदोन्नति का कोटा 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया। कालान्तर में 15 सितम्बर 1990 को पदोन्नति का कोटा 50 प्रतिशत निर्धारित कर दिया गया। प्रबन्ध समिति के असीमित अधिकारों को विधिक दायरे में सीमित करते हुये यह प्राविधान अधिनियमित कर दिया गया कि शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को 60 दिन से अधिक निलंबित नहीं रखा जा सकेगा। संघर्ष का नया संघर्ष 1977-78 में तत्कालीन प्रान्तीय अध्यक्ष मा० आर.एन. ठकुरई व महामंत्री स्व. मान्धाता सिंह के नेतृत्व में चला। 42 दिन तक प्रदेश के सभी माध्यमिक विद्यालयों में पूर्ण हड़ताल रखी। 39 हजार से अधिक शिक्षक सत्याग्रह करके जेल के सीखचों के पीछे रहे। 39 हजार शिक्षकों का वेतन काट दिया तथा कई हजार वैकल्पिक नियुक्तियां करके। लगभग 11 हजार शिक्षकों को सेवा से वर्खास्त कर दिया गया। इस अभूतपूर्व आन्दोलन के वाबजूद सत्ता की हठधर्मिता से आन्दोलन जनता को समर्पित हुआ। प्रखर आन्दोलन के पहरी विचलित नहीं हुये फलतः नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त से सेवायें भी वहाल हुईं और वेतन का भी भुगतान हुआ। शिक्षकों का वलिदान व्यर्थ नहीं गया और अप्रैल 1978 से पेंशन की लाभत्रयी योजना शासन को लागू करनी पड़ी।
सन 1984 में 16 जनवरी से प्रान्तीय अध्यक्ष मा० मान्धाता सिंह व स्व० पंचानन राय के नेतृत्व में शिक्षकों द्वारा एक आन्दोलन चलाया गया। जिसके परिणाम स्वरूप पेंशन का राशिकरण तथा पारिवारिक पेंशन एवं मृतक आश्रित को तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पद पर नियुकित का अधिकार प्राप्त हो सका। तत्पश्चात वर्ष 1986 में शिक्षकों और कर्मचारियों ने संयुक्त रूप से चतुर्थ केन्द्रीय वेतनमानों को लागू किये जाने हेतु आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन में शिक्षकों को चतुर्थ केन्द्रीय वेतनमानों की समानता से वंचित कर दिया गया। इस घटनाक्रम में कर्मचारियों के साथ मिलकर संघर्ष करने की परम्परा का ह्रास हो गया। 14 अक्टूबर 1986 को माधमिक विद्यालयों में वित्तविहीन व्यवस्था का अधिनियम पारित हुआ जिस पर संघर्ष न किये जाने के कारण इस व्यवस्था ने विस्तार ले लिया।
कालान्तर में पंचम वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू किये जाने में किये गये संघर्ष के फलस्वरूप तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 1 जनवरी 1996 से लागू कर उनके प्रकल्पित वेतन निर्धारण का परिणामी लाभ 1 जुलाई 2001 से प्रदान किया। छठे वेतन आयोग की संस्तुतियों के लागू किये जाने के सम्बन्ध में भी 8 दिसम्बर 2008 को निर्गत राजज्ञा में भी शिक्षकों को वेतनमानों की समानता से वंचित कर दिया गया। यहाँ भी संषर्घ की परिस्थतियों ने पुनः जन्म लिया जिसके परिणामस्वरूप 24 जनवरी 2009 को निर्गत राजज्ञा से केन्द्रीय वेतन समानता का लाभ प्राप्त हो सका ।
इस संक्षिप्त इतिहास को सम्मेलन के समक्ष रेखांकित करने के पीछे हमारा उद्देश्य नई पीढ़ी को यह
बताना है कि अधिकारों की प्राप्ति हेतु संघर्ष का कोई विकल्प नहीं होता है। हमारी प्राथमिकता है कि सभी प्रकार के तदर्थ शिक्षकों को विनयमित किया जाये और वित्तविहीन शिक्षकों की सेवाओं का सत्यापन शिक्षा विभाग के सक्षम अधिकारी द्वारा किया जाये तथा इन वित्तविहीन शिक्षकों को बैंक के माध्यम से वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाये ताकि उन्हें बोनाफाइट शिक्षक विधिवत मान्यता प्रदान की जा सके। इसी प्रकार सी.टी. ग्रेड की सेवाओं का लाभ स्नातक वेतनक्रम के निर्धारण तिथि सं एवं 1 अप्रैल 2005 के बाद सेवारत शिक्षकों को पुरानी पेंशन से अच्छादित किया जाये।
दो दशक से अधिक समय से शिक्षक संगठन शासन को केवल प्रतिवेदन प्रस्तुत करना ही कर्तव्य का अन्त मानता आ रहा था। वर्तमान प्रान्तीय अध्यक्ष माननीय चेत पारायण सिंह पूर्व एम०एल०सी० तथा वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री लवकुश कुमार मिश्र पूर्व एम०एल०सी० के नेतृत्व सात ज्वलन्त एवं प्रमुख समस्याओं को लेकर 7 दिसम्बर 2011 से 21 दिसम्बर 2011 तक जेल भरो आन्दोलन चलाया गया। कई हजार शिक्षक प्रदेश में गिरफ्तार किये गये। शिक्षामंत्री से वार्ता के वाद माँगों पर 22 दिसम्बर 2011 को विन्दुबार वार्ता का एक कार्यव्रत भी बना किन्तु दो दिन बाद चुनाव की अचार संहिता लागू हो जाने के कारण समझौता अभी अधर में ही है। अब हमें इन मुद्दों पर नये सिरे से संषर्घ के लिये विचार करना होगा।
हमारी मान्यता है कि प्रकृति निहित शक्ति नये सृजन करती है और इसी शक्ति के बल पर प्रायः सभी जनपदों में हमारा संगठन ग्राह्य होकर मुख्य धारा बनता जा रहा है। हमें संगठित होकर संघर्ष के लिये तत्पर होना है और पुरानी पीढ़ी के तेजस्वी संघर्ष से प्रेरणा लेनी है। प्रारम्भिक आन्दोलनों में जन साधारण का भावनात्मक लगाव आन्दोलन के पक्ष में रहा जटिलताओं, अवरोधों और कठिनाइयों के बावजूद साहयता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों का अपनी ओर आकर्षण उत्पन्न करने का दायित्व बोध के प्रति पतिवद्ध रहना हमारा नैतिक दायित्व है।